संदेश

नारी सहमति

भले ही आज हिंदुस्तान मंगल तक पहुँच गया हो लेकिन आज भी हिंदुस्तान का पुरुष प्रधान देश संकीर्णताओं से ग्रस्त है। खासकर के महिलाओं के मामलें में। हर विकसित देश विकास को प्राप्त करने के लिए महिलाओं और पुरुषों को कंधे से कन्धा मिलाकर चलने की बात करता है। लेकिन ये सुझाव शायद ही भारत जैसे देश में अपनाए जा सके। यहाँ तो प्राचीन काल से ही स्त्रियों को पुरुषों से कमतर ही समझा गया है जो आज भी विद्यमान है। हमारे देश के संविधान को बने हुए ६७ साल हो चुके है जो सभी देशवासियों को हर प्रकार की स्वतंत्रता देने का वचन तो देता है लेकिन स्त्रियों के मामले में ये संविधान केवल एक पुस्तक मात्र बन कर रह गया है। यूँ तो इसमें स्त्रियों को हर प्रकार की स्वतंत्रता पुरुषों के बराबर दी गयी है परन्तु वास्तविकता क्या है इससे सभी अवगत है। यहाँ स्त्रियाँ सिर्फ वैवाहिक जीवन का सुख भोगने का एक साधन मात्र बन कर रह गयी है। उनका बस एक ही कर्त्तव्य निर्धारित किया गया है - जीवन पर्यन्त पति और उसके परिवारजनों की सेवा सुशुश्रा करना। जन्म से ही उन्हें स्वयं निर्णय लेने के योग्य समझा ही नहीं जाता। उनका हर निर्णय उनके माता-

एक और आतंक

पिछले दो महीनों से कश्मीर अलगाववादियों के उग्र प्रदर्शनों से जूझ रहा है। तभी जम्मू कश्मीर के बारामूला के उरी सेक्टर में 18 सितम्बर की सुबह साढ़े 5 बजे सेना के इनफैंट्री बटालियन कैंप पर बड़ा आतंकी हमला होना हिंदुस्तान के लिए चिंता की बात है। इस हमले में हमारे 17 बहादुर जवान शहीद हो गए और कई घायल हो गए। सैन्य बलों ने जवाबी कार्रवाई में सभी चार आतंकियों को मार गिराया। पर क्या 4 आतंकियों को मारने से आतंक मिट जायेगा? इसी 8 जुलाई को सुरक्षाबलों द्वारा एक मुठभेड़ में हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी बुरहान वानी को मार दिया गया था जिसके बाद से पिछले करीब दो माह से अधिक समय से कश्मीर घाटी में अशांति बनी हुयी है। यह अशांति पकिस्तान की शह पर अलगावादियों व देशविरोधी तत्वों द्वारा प्रायोजित है। इस अशांत माहौल में सुरक्षाबलों और नागरिकों के बीच हुये संघर्ष में अब तक करीब 80 लोगों की मौत हो चुकी है। यह हमला शायद बुरहान वानी की मौत का ही बदला था। बदला लेने की यही परंपरा इंसानियत के लिए ख़तरा बनती जा रही है। ईश्वर ने हमें ये शरीर दूसरों की सेवा में लगाने के लिए दिया है, अपने जन्म को सार्थक करने के लि

पत्थर टाकनें वाला भूत

कुछ दिनों पहले एक अजीबों गरीब घटना के बारें में सुना। कि कोई रातों रात सिल और चकरी टांक रहा है। सुन कर यकीन तो नहीं हुआ लेकिन फिर जब अपने घर में भी यही मंज़र देखा तो इनकार करना थोड़ा मुश्किल सा हो गया। लेकिन फिर भी मन में एक जिज्ञासा थी कि आखिर ऐसा कैसे हो सकता है वो भी एक दो जगह नहीं बल्कि हर तरफ से यही बातें सुनने को मिल रही थी। हर अखबार में इसके किस्सों की भरमार थी। लोगो ने तो अपने हिसाब से अलग अलग मनगढ़ंत कहानियाँ भी बनानी शुरू कर दी। लोग ऐसी ही फ़िराक में तो रहते है कि कब ऐसी परिस्थिति आये तो वे अपनी कहानी लेखन की कला को थोड़ा धार दे सके। कोई कहता कि भूत कर रहा है ऐसा, कोई कुछ तो कोई कुछ। मेरे दिमाग में भी घूम घूम कर बस एक ही सवाल आता कि आख़िर ऐसा कौन कर सकता है पर जवाब कुछ भी न था। ऐसे ही कुछ दिन गुज़रते गुज़रते ये खबरें भी ठंडी पढ़ने लगी। फिर अचानक ही सच सबके सामने आ गया। मुझे तो लगा था कि काफी बड़ा सच होगा भूत के जितना बड़ा। पर ये क्या ये सच तो अनुमान से भी ज्यादा छोटा निकला। बस एक कीड़े के आकार जितना। जी हाँ ये एक कीड़ा ही तो था जिसका नाम वैज्ञानिकों ने स्टोन बीटल बताया है। दरअसल

नशीला संगीत

संगीत जिसकी लोग पूजा करते है, जिसे ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग माना जाता था वो भी आज इंसान के कर्मों से दूषित हो चुका है। प्राचीन काल में तो संगीत का उपयोग ईश्वर को प्रसन्न करने तथा मन की शांति के लिए होता था। लेकिन आज के समय का संगीत मन की शांति तो नहीं वरन् मन के भटकाव में जरूर सहायक हो रहा है। आज का युग मोह- माया का युग है। संगीत का ये हाल माया के मोह ने ही तो किया है। जब से संगीत की बिक्री का चलन शुरू हुआ है तब से निरंतर इसका ह्रास ही हुआ है। आज तो हर कोई संगीत का निर्माण केवल इसीलिए करता है ताकि उसे वो ऊँचे दामों पर बेच सके। अब चाहे उसे बेचने के लिए उसके अस्तित्व पर ही प्रहार क्यों न हो जाए। आज के युग में संगीत के माध्यम से ईश्वर की आराधना का भी नया ट्रेंड शुरू हुआ है। पहले तो लोग खुद भजन गाकर ईश्वर को प्रसन्न करने की कोशिश किया करते थे आज तो साउंड सिस्टम में भक्ति गाने बजा दिए बस हो गयी आरती और हो गया भजन। यहाँ तक भी बात कुछ हज़म हो सकती है लेकिन अब तो भक्ति गानों को भी अश्लील हिंदी गानों की धुनों पर बनाया जा रहा है जैसे- बीड़ी जलइले इत्यादि पर। कुछ वर्षो में संगीत के ए

चीनी दीवाली

वर्षों से हम सब दीपावली के दिन चीनी दीवाली ही तो मनाते आये है। मिट्टी से बने हुए तेल और घी के दीपकों की जगह बाहर देशों से आयी हुयी झालरों ने ले ली है। जिसने गरीब कुम्हारों का तो जैसे दीवाली मनाने का हक ही छीन लिया हो जिनके बनाये हुए दीयों से कभी दूसरों के घर रोशन हुआ करते थे। हमनें तो दीयों की जगह विद्युत झालरों को दे दी पर वो कुम्हार इतना धन कहा से लाये कि अपनी दीवाली मना सके। पिछले कई वर्षों से चीन भारत देश में अपना हर प्रकार का माल निर्यात करता आया है। चीन इस तरह भारतवर्ष के उद्योगों को बहुत क्षति पहुंचा रहा है। आज तो कोई भी भारतीय त्यौहार बिना चीनी माल के मनाया ही नहीं जाता फिर चाहे वो दीवाली की झालरें और पटाखें हो या फिर होली के रंग। लोग चीनी माल को सस्ते होने की वजह से उपयोग में लाते है। बात सच भी है हर कोई कम पैसो में खरीदारी करना चाहता है। लेकिन अगर इस बात पर गहन विचार किया जाये और बातों पर अमल किया जाये तो उतने ही पैसो में हमारे देश में भी वही सामान बनाया जा सकता है। बस इन सब के लिए सभी भारतवासियों को दूसरे देशों के निर्यातित माल को खरीदना बंद करना होगा और अपने देश में बनी